गंगा दशहरा
(गंगा दशहरा विसरित क्यों,कैसे,बनाया, पूर्ण कहानी l)
वीर योद्धा आल्हा का जन्म जेठी दशहरा को माना जाता है।
गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसी दिन मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था।
सामान्य तथ्य गंगा दशहरा,
गंगा दशहरा, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी
गंगावतरण की कथा
युधिष्ठिर ने लोमश ऋषि से पूछा, “हे मुनिवर! राजा भगीरथ गंगा को किस प्रकार पृथ्वी पर ले आये? कृपया इस प्रसंग को भी सुनायें।“ लोमश ऋषि ने कहा, “धर्मराज! इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुये। उनके वैदर्भी और शैव्या नामक दो रानियाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पर्वत पर दोनों रानियों के साथ जाकर शंकर भगवान की घोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा कि हे राजन्! तुमने पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी आराधना की है। अतएव मैं वरदान देता हूँ कि तुम्हारी एक रानी के साठ हजार पुत्र होंगे किन्तु दूसरी रानी से तुम्हारा वंश चलाने वाला एक ही सन्तान होगा। इतना कहकर शंकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये।
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“समय बीतने पर शैव्या ने असमंज नामक एक अत्यन्त रूपवान पुत्र को जन्म दिया और वैदर्भी के गर्भ से एक तुम्बी उत्पन्न हुई जिसे फोड़ने पर साठ हजार पुत्र निकले। कालचक्र बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। असमंज अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का था इसलिये राजा सगर ने उसे अपने देश से निष्कासित कर दिया। फिर एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की दीक्षा ली। अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण घोड़ा छोड़ दिया गया और उसके पीछे-पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चलने लगे। सगर के इस अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का पता ही न चला। इधर सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े को पृथ्वी के हरेक स्थान पर ढूँढा किन्तु उसका पता न लग सका। वे घोड़े को खोजते हुये पृथ्वी को खोद कर पाताल लोक तक पहुँच गये जहाँ अपने आश्रम में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे और वहीं पर वह घोड़ा बँधा हुआ था। सगर के पुत्रों ने यह समझ कर कि घोड़े को कपिल मुनि ही चुरा लाये हैं, कपिल मुनि को कटुवचन सुनाना आरम्भ कर दिया। अपने निरादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया।
“जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा। अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमाप्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मृदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा। अंशुमान बोले कि मुने! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बतायें। कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स! जब तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है।
“अंशुमान ने यज्ञ का अश्व लाकर सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया। यज्ञ पूर्ण होने पर राजा सगर अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये इस प्रकार तपस्या करते-करते उनका स्वर्गवास हो गया। अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था। दिलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये किन्तु वे भी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके। दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। भगीरथ के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हें भी असफलता ही हाथ आई।
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“अन्ततः भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान माँगने के लिया कहा। भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा कि माता! मेरे साठ हजार पुरखों के उद्धार हेतु आप पृथ्वी पर अवतरित होने की कृपा करें। इस पर गंगा ने कहा वत्स! मैं तुम्हारी बात मानकर पृथ्वी पर अवश्य आउँगी, किन्तु मेरे वेग को भगवान शिव के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता। इसलिये तुम पहले भगवान शिव को प्रसन्न करो। यह सुन कर भगीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी हिमालय के शिखर पर गंगा के वेग को रोकने के लिये खड़े हो गये। गंगा जी स्वर्ग से सीधे शिव जी की जटाओं पर जा गिरीं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने पीछे-पीछे अपने पूर्वजों के अस्थियों तक ले आये जिससे उनका उद्धार हो गया। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करके गंगा जी सागर में जा गिरीं और अगस्त्य मुनि द्वारा सोखे हुये समुद्र में फिर से जल भर गया।“
अच्छे योग
यदि ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन मंगलवार रहता हो व हस्त नक्षत्र युता तिथि हो यह सब पापों के हरने वाली होती है। वराह पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।
महिमा
भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पाता है। यह दशहरा के दिन स्नान करने की विधि पूरी हुई। स्कंद पुराण का कहा हुआ दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र और उसके पढ़ने की विधि – सब अवयवों से सुंदर तीन नेत्रों वाली चतुर्भुजी जिसके कि, चारों भुज, रत्नकुंभ, श्वेतकमल, वरद और अभय से सुशोभित हैं, सफेद वस्त्र पहने हुई है।
मुक्ता मणियों से विभूषित है, सौम्य है, अयुत चंद्रमाओं की प्रभा के सम सुख वाली है जिस पर चामर डुलाए जा रहे हैं, वाल श्वेत छत्र से भलीभाँति शोभित है, अच्छी तरह प्रसन्न है, वर के देने वाली है, निरंतर करुणार्द्रचित्त है, भूपृष्ठ को अमृत से प्लावित कर रही है, दिव्य गंध लगाए हुए है, त्रिलोकी से पूजित है, सब देवों से अधिष्ठित है, दिव्य रत्नों से विभूषित है, दिव्य ही माल्य और अनुलेपन है, ऐसी गंगा के पानी में ध्यान करके भक्तिपूर्व मंत्र से अर्चना करें। ‘ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा’ यह गंगाजी का मंत्र है।
इसका अर्थ है कि, हे भगवति गंगे! मुझे बार-बार मिल, पवित्र कर, पवित्र कर, इससे गंगाजी के लिए पंचोपचार और पुष्पांजलि समर्पण करें। इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि, ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा।
- पीछे स्तोत्र पढ़ना चाहिए। ईश्वर बोले कि, आनंदरूपिणी आनंद के देने वाली गंगा के लिए बारंबार नमस्कार है।
विष्णुरूपिणी के लिए और तुझ ब्रह्म मूर्ति के लिए बारंबार नमस्कार है।। 1।।
तुझ रुद्ररूपिणी के लिए और शांकरी के लिए बारंबार नमस्कार है, भेषज मूर्ति सब देव स्वरूपिणी तेरे लिए नमस्कार है।। 2।।
सब व्याधियों की सब श्रेष्ठ वैद्या तेरे लिए नमस्कार, स्थावर जंगमों के विषयों को हरण करने वाली आपको नमस्कार।। 3।।
संसाररूपी विष के नाश करने वाली एवं संतप्तों को जिलाने वाली तुझ गंगा के लिए नमस्कार ; तीनों तापों को मिटाने वाली प्राणेशी तुझ गंगा को नमस्कार।। 4।।
मूर्ति तुझ गंगा के लिए नमस्कार, सबकी संशुद्धि करने वाली पापों को बैरी के समान नष्ट करने वाली तुझ...।। 5।।
भुक्ति, मुक्ति, भद्र, भोग और उपभोगों को देने वाली भोगवती तुझ गंगा को।। 6।।
तुझ मंदाकिनी के लिए देवे वाली के लिए बारंबार नमस्कार, तीनों लोकों की भूषण स्वरूपा तेरे लिए एवं तीन पंथों से जाने वाली के लिए बार-बार नमस्कार।
गंगा दशहरा,
कोई इस श्लोक में ‘त्रिपथायै’ इसके स्थान में ‘जगद्धात्रैय’ ऐसा पाठ करते हैं। इसका अर्थ होता है कि, जगत् की धात्री के लिए नमस्कार।।
7।। तीन शुक्ल संस्थावाली को और क्षमावती को बारंबार नमस्कार तीन अग्नि की संस्थावाली तेजोवती के लिए नमस्कार है, लिंग धारणी नंदा के लिए नमस्कार तथा अमृत की धारारूपी आत्मा वाली के लिए नमस्कार कोई ‘नारायण्यै नमोनम:’ नारायणी के लिए नमस्कार है ऐसा पाठ करते हैं।।
8।। संसार में आप मुख्य हैं आपके लिए नमस्कार, रेवती रूप आपके लिए नमस्कार, तुझ बृहती के लिए नमस्कार एवं तुझ लोकधात्री के लिए नम: है।। 9।।
संसार की मित्ररूपा तेरे लिए नमस्कार, तुझ नंदिनी के लिए नमस्कार, पृथ्वी शिवामृता और सुवृषा के लिए नमस्कार।।
10।। पर और अपर शतों से आढया तुझ तारा को बार-बार नमस्कार है। फंदों के जालों को काटने वाली अभित्रा तुझको नमस्कार है।।
11।। शान्ता, वरिष्ठा और वरदा जो आप हैं आपके लिए नमस्कार, उत्रा, सुखजग्धी और संजीवनी आपके लिए नमस्कार।।
12।। ब्रहिष्ठा, ब्रह्मदा और दुरितों को जानने वाली तुझको बार-बार नमस्कार।।
13।। सब आपत्तियों को नाश करने वाली तुझ मंगला को नमस्कार।।
14।। सबकी आर्तिको हरने वाली तुझ नारायणी देवी के लिए नमस्कार है। सबसे निर्लेप रहने वाली दुर्गों को मिटाने वाली तुझ दक्षा के लिए नमस्कार है।
15।। पर और अपर से भी जो पर है उस निर्वाण के लिए देने वाली गंगा के लिए प्रणाम है। हे गंगे! आप मेरे अगाडी हों आप ही मेरे पीछे हों।।
16मेरे अगल-बगल हे गंगे! तू ही रह हे गंगे! मेरी तेरे में ही स्थिति हो। हे गंगे! तू आदि मध्य और अंत सब में है। सर्वगत है तू ही आनंददायिनी है।।
17।। तू ही मूल प्रकृति है, तू ही पर पुरुष है, हे गंगे ! तू परमात्मा शिवरूप है, हे शिवे! तेरे लिए नमस्कार है।।
18।। जो कोई इस स्तोत्र को श्रद्धा के साथ पढ़ता या सुनता है वो वाणी शरीर और चित्त से होने वाले पापों से दस तरह से मुक्त होता है।।
19।। रोगी, रोग से विपत्ति वाला विपत्तियों से, बंधन से और डर से डरा हुआ पुरुष छूट जाता है।।
20।। सब कामों को पाता है मरकर ब्रह्म में लय होता है। वो स्वर्ग में दिव्य विमान में बैठकर जाता है।।
21।।जो इस स्तोत्र को लिखकर घर में रख छोड़ता है उसके घर में अग्नि और चोर से भय नहीं होता एवं पापी ही वहाँ सताते हैं।।
22।। ज्येष्ठ शुक्ला हस्तसहित बुधवारी दशमी तीनों तरह के पापों को हरती है।।
23।। उस दशमी के दिन जो कोई गंगाजल में खड़ा होकर इस स्तोत्र को दस बार पढ़ता है जो दरिद्र हो या असमर्थ हो।।
24।। वो गंगाजी को प्रयत्नपूर्वक पूजता है तो उसे भी वही फल मिल जाता है जो कि पहले विधान से फल कहा है।।
25।। जैसी गौरी है वैसी ही गंगाजी है इस कारण गौरी के पूजन में जो विधि कही है वही विधि गंगा के पूजन में भी होती है।।
26।। जैसे शिव वैसे ही विष्णु और शिव में तथा श्री और गौरी में तथा गंगा और गौरी में जो भेद बताता है वो निरा मूर्ख है।।
28।। वो रौरवादिक घोर नरकों में पड़ता है। अदत्त का उपादान, अविधान की हिंसा।।
29।। दूसरे की स्त्री के साथ रमण, ये तीन (कायिक) शारीरिक पाप। पारुष्य, अनृत और चारों ओर की पिशुनता।।
30।। असंबद्ध प्रलाप ये चार तरह की वाणी। पाप; दूसरे के धन की चाह, मन से किसी का बुरा चीतना।।
31।।मिथ्या का अभिनिवेश ये तीन तरह का मन का पाप, इन दसों तरह के पापों को हे गंगे आप दूर कर दें।
32।। ये दस पापों को हरती है, इस कारण इसे दशहरा भी कहते हैं, कोटि जन्म के होने वाले इन दस तरह के पापों से।।
33।। छूट जाता है इसमें संदेह नहीं है। हे गदाधर! यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है ! यदि इस मंत्र से गंगा का पूजन करा दिया तो तीनों के दस, तीस और सौ पितरों को संसार से उबारती है।।
34।। कि, ‘भगवती नारायणी दस पापों को हरने वाली शिवा गंगा विष्णु मुख्या पापनाशिनी रेवती भागीरथी के लिए नमस्कार है’। ज्येष्ठमास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार हस्त नक्षत्र गर, आनंद व्यतिपात, कन्या के चंद्र, वृष के रवि इन दशों के योग में जो मनुष्य गंगा स्नान करता है वो सब पापों से छूट जाता है।।
35।।मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
36।। जो सबसे पहले तो ब्रह्माजी के कमण्डल में विराजती थी पीछे भगवान के चरणों का धोवन बनकर शिवजी की जटाओं में रह जटाओं का भूषण बनी पीछे जन्हु महर्षि की कन्या बनी, यही पापों को नष्ट करने वाली भगवती भागीरथी दिखती है।।
38॥गगा दशहरा एगो हिंदू तिहुआर हवे। हिंदू धर्म में गंगा नदी के देवी आ माता मानल गइल हवे आ अइसन मानल जाला कि एही दिन गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरल रहली जेकरा के गंगावतरण कहल जाला। ई परब हर साल हिंदू कैलेंडर के हिसाब से जेठ महीना के अँजोर में दसिमी तिथी के मनावल जाला।
[1] एह दिन लोग ब्रत रहे ला आ नहान-दान करे ला। कुछ जगहन पर ई दस दिन चले वाला परब होला जेह में दसिमी से पहिले वाला नौ दिन सामिल रहे ला। गंगा के तीरे बसल धार्मिक नगर सभ खाती एह दिन के खास महत्व होला आ हरिद्वार में हर की पौड़ी, ऋषिकेश, प्रयाग (इलाहाबाद), बनारस आ पटना में लोग गंगा नहान आ पूजा करे ला।
इस तरह ब्रह्माजी के कमंडल से गंगा शिवजी की जटाओं में समा गईं. गंगा के अहंकार को मिटाने के लिए शिवजी ने इसे अपनी जटाओं में पथभ्रमित कर दिया.
कई दिन तक चलने के बाद भी वह बाहर निकलने का रास्ता नही खोज पाई. अन्तः ज्येष्ठ सुदी दशमी को गंगा का धरती पर अवतरण हुआ. जिसे गंगा नदी का जन्म दिवस अर्थात गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता हैं
गंगा की कहानी Bhagirathi And Ganga Story In Hindi
गंगा की कहानी Bhagirathi And Ganga Story In Hindi : गंगा, जाह्नवी और भागीरथी ये भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के ही नाम हैं. गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं बल्कि यह माँ का स्थान पाने वालो पापों का उद्धार करने वाली हितकारीणी है. एक समय में गंगा देवलोक में बहती थी. यह प्रथ्वी पर कैसे आई. इस सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित है इस सम्बन्ध में भागीरथी की कथा को प्रमुखता दी जाती हैं. चलिए आज हम जानते है कि गंगा की कहानी क्या है.
Bhagirathi Ganga Story In Hindi गंगा की कहानी
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1 Bhagirathi Ganga Story In Hindi गंगा की कहानी
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गंगा की कहानी Bhagirathi And Ganga Story In Hindi
नारद पुराण में गंगा नदी के उद्भव और उनके पृथ्वी पर लाए जाने की कथा का वर्णन मिलता हैं. जीव की जन्म जन्मातर के इस चक्र के लिए गंगा को मोक्षदायिनी माना गया है कहते है जिसके दाह संस्कार के बाद उसकी भस्मी को गंगा जी में डाल दिया जाए वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है तथा जन्म जन्म के इस चक्कर से मुक्ति पा लेता हैं.
प्राचीन समय में सागर नामक राजा हुआ करते थे उनके दो पत्नियाँ थी एक का नाम केशनी तथा दूसरी का नाम सुमति था. इन्हें कोई पुत्रर नहीं था.
पुत्र प्राप्ति के लिए इन्होने कठोर तपस्या की यज्ञ करवाए ऋषि औरवा ने उन्हें दो वरदान दिए. दोनों रानियों से पूछा कि आपके पास दो विकल्प है. एक प्रतापी सत्यनिष्ठ राजा जबकि दूसरी तरफ साठ हजार पुत्र.
केशनी ने एक बेटे को चुना तथा सुमति ने साठ हजार पुत्रों को. समय बीतता गया. केशनी का बेटा बड़ा होकर राजा बना, सुमति के साठ हजार पुत्र बड़े अहंकारी थे.
वे उस राजा के जीवन में तथा देवों के कार्यों में बाधाएं उत्पन्न करने लगे. राजा एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया. तथा यज्ञ के घोड़े को खुला छोड़ दिया.
उस समय यज्ञ के इस घोड़े के साथ यह मान्यता होती थी कि जो उस राजा से प्रसन्न होता था अपने राज्य से घोड़े को जाने देता था. मगर जो राजा से खुश नहीं होते थे वे घोड़े को पकड़ लेते थे.
सुमति के उन साठ हजार बेटों ने घोड़े को रोककर उनके उनके कार्य में विघ्न डालना चाहा, इसके लिए वे घोड़े का पीछा करने लगा.
राजा इंद्र ने यहाँ अपनी चाल चली. वे उस घोड़े को लेकर ऋषि कपिला के आश्रम में छिपा देते हैं. जिसकी खबर उस संत को नहीं होती हैं.
जब सागर के साठ हजार पुत्र ऋषि की कुटियाँ में घोड़ा बंधा पाते है तो वे उसे चोर कहकर अपमानित करते हैं. ध्यान मुद्रा में बैठे ऋषि क्रोधित हो गये उनकी आँखों की ज्वाला से साठ हजार पुत्र वहीँ जलकर राख हो गये.
जब सागर को उनके पुत्रों के इस हश्र की खबर मिली तो वे ऋषि कपिला के आश्रम पहुचे तथा सम्पूर्ण घटनाक्रम जाना. उन्होंने ऋषि से जब पुनर्जीवन की बात पूछी तो कपिला बोले- जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके है अब उसका कुछ नहीं हो सकता.
मगर इन साठ हजार आत्माओं का यदि मोक्ष चाहते हैं तो इसकी राख को गंगाजी में बहाना होगा. तभी इनके जीवन का कल्याण होगा तथा वे जीवन मृत्यु के चक्र से निकल कर मोक्ष को प्राप्त करेगे.
राजा सगर अपने पुत्रों को मोक्ष दिलाने के कार्य में विफल रहे और उसका देहांत हो गये इसके बाद अंशुमान शासक बने तथा इनके घर राजा दिलीप का जन्म हुआ.
दिलीप ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए हिमालय में जाकर गंगा मैया की कठोर तपस्या की, मगर उनकी तपस्या सफल नहीं हो पाई, वे भी तीन पीढ़ियों के इस अधूरे कार्य को राजा भगीरथ को सौप कर चले गये.
भागीरथ के कोई सन्तान नही थी उनहोंने राज काज का कार्य मंत्रियों को सौप दिया तथा स्वयं हिमालय में रहकर ब्रह्माजी जी की आराधना करने लगे. इनकी कठोर तपस्या से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए तथा उन्होंने गंगा जी को पृथ्वी लोक पर लाने का वरदान दे दिया.
मगर गंगा के वेग को धारण करने की धरती लोक में किसी के पास क्षमता नहीं थी. अतः शिवजी की तपस्या राजा भगीरथ ने की तथा उन्हें अपने जटाओं में गंगा उतारने के लिए राजी किया.
इस तरह शिवजी के मुकुट से गंगा धरती लोक पर आई तथा राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों का कल्याण किया






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